जैन समाज के ज्येष्ठ व श्रेष्ठ जैनाचार्य, श्वेतपिच्छी धारी श्री विद्यानन्द जी मुनिराज का ४९ वां मुनि दीक्षा स्मृति दिवस भव्य स्तर पर सेकड़ों लोगों के मध्य पूज्य आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के प्रिय शिष्य पूज्य अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ससंघ के परम पावन सानिध्य में २५ जुलाई को संपन्न हुआ.कार्यक्रम का शुभारम्भ मंगलाचरण के साथ हुआ और पूज्य आचार्य श्री की पूजन,चित्र अनावरण और आरती भी की गई.पूज्य एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ने गुरु चरण में अपने वचनों के माध्यम से विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा:-जैन समाज का अहो भाग्य है जिन्हें इस कलयुग में चलते फिरते तीर्थंकर के सामान महँ जैन आचार्य प्राप्त हुए.जिन्हें जैन जैनेत्तर ग्रंथों का चलते फिरते पुस्तकालय कहा जाता है जो आज भी प्रतिदिन श्लोक आदि याद करते हैं,वात्सल्य की छाया प्रत्येक शिष्य व भक्त निरंतर बनी रहती है.मेरा अहो भाग्य है जिसे ऐसे ज्येष्ठ व श्रेष्ठ आचार्य गुरु के रूप में प्राप्त हुए.ऐसे गुरु जिन्होंने मुझे माँ-बाप के सामान अपने पुत्र का स्थान दिया.
आज उन भारत गौरव आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज के भी श्री चरणों में नमोस्तु वंदन करता हूँ जिन्होंने ऐसे महान परोपकारी शिष्य का निर्माण किया.
मै भगवान से प्राथना करता हूँ की आज हम आचार्य श्री का ४९ वां दीक्षा दिवस ही नही अपितु शताधिक दीक्षा दिवस भी उन्ही के पावन उपस्थिति में मनाएं."
आज उन भारत गौरव आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज के भी श्री चरणों में नमोस्तु वंदन करता हूँ जिन्होंने ऐसे महान परोपकारी शिष्य का निर्माण किया.
मै भगवान से प्राथना करता हूँ की आज हम आचार्य श्री का ४९ वां दीक्षा दिवस ही नही अपितु शताधिक दीक्षा दिवस भी उन्ही के पावन उपस्थिति में मनाएं."
पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज की मुनि दीक्षा भारत गौरव पूज्य आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज के करकमलों द्वारा दिल्ली के ऋषभदेव ग्राउंड(परेड ग्राउंड) चांदनी चौक में २५ जुलाई 1962 को संपन्न हुई थी.पूज्य आचार्य श्री का मुनि दीक्षा काल वर्तमान में १२०० पिच्छि धारियों में सबसे अधिक है. ऐसे महान पूज्य आचार्य श्री के चरण कमलों में शत शत नमोस्तु करते हुए भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आप शताधिक आयु के धारी हों.
पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज की जय हो। उनके चरणों मे शत शत नमन।
ReplyDeleteन जाने क्यो इतने समय से मैं अपने गुरुवर के चरण स्पर्श नहीं कर प रहा हूँ