फिरोजाबाद: इस वर्ष जहाँ 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ तीर्थंकर का मोक्ष कल्याणक सम्पूर्ण देश मना रहा था वही सम्पूर्ण देश ने राष्ट्र संत का 50वाँ स्वर्ण जयंती मुनि दीक्षा दिवस भी धूम धाम से आयोजित किया. परम पूज्य लोह पुरुष एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज के परम पुनीत सानिध्य में भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण लाडू महोत्सव एवं आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज का स्वर्ण मुनि दीक्षा जयंती का आयोजन सानंद 25 जुलाई को प्रातः काल की आनंद दायक बेला में संपन्न हुआ. शाश्वत तीर्थराज सम्मेद शिखर जी की कृत्रिम रचना कर स्वर्णभद्र कूट पर 23 किलो का निर्वाण लाडू श्री अरुण जैन 'पिली कोठी' वालों ने चढ़ाया साथ ही 2323 लाडू भी समाज द्वारा चढ़ाये गए.प्रातः काल पंडाल में भगवान का विधिवत अभिषेक और पूजन हुआ जिसके मध्य निर्वाण लाडू चढ़ाया गया.
एक ओर जहाँ सर्वश्रेष्ठ तीर्थराज की रचना पर आनंदोत्सव किया जा रहा था वही दूसरी ओर सर्वश्रेष्ठ जैनाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज का मुनि दीक्षा स्वर्ण जयंती महोत्सव का भी आयोजन किया गया. 25 जुलाई सन १९६३, दिल्ली के सुभाष मैदान को समरण करते हुए पूज्य आचार्य श्री को विनयांजलि प्रस्तुत करते हुए प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जी जैन ने कहा कि "आचार्य श्री के लिए जितना कहा जाये उतना कम है और सूरज को दिया दिखने के सामान है. आचार्य श्री जैन समाज कि धरोहर है जिसे हम पाकर गर्व से फुले नहीं समाते."कार्यारम में बचो द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी संपन्न हुए तथा आचार्य श्री देशभूषण जी मुनिराज का उपकार मानते हुए एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरुदेव आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज का वात्सल्य, अनुकम्पा, सहजता, सरलता, ज्ञान, गंभीरता, सौम्यता आदि अनेको गुण सहज ही देखने को प्राप्त हो जाते है.आचार्य महाप्रज्ञ तो आचार्य श्री को चलते फिरते विश्वविद्यालय कहते थे.बौध भिक्षु दलाई लामा भी आचार्य श्री के ज्ञान का लोहा मानते हैं.वर्तमान काल में आचार्य श्री सर्वश्रेष्ठ और सर्वज्येष्ठ मुनि है. आचार्य श्री के स्वास्थ लाभ और मुनि दीक्षा शाताब्धि वर्ष आचार्य श्री के सानिध्य में मनाने को मिले ऐसी मंगल कामना कर अपने विचार प्रस्तुत किये.
02 अगस्त को शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी कि कृतिम रचना पर भगवान श्रेयांसनाथ निर्वाण लाडू एलाचार्य श्री के सानिध्य में चढ़ाया गया और अष्टम बलभद्र श्री रामचंद्र और रानी सीता के युगल पुत्र, तद्भव मोक्षगामी श्री अनंगलवण और मदनान्कुश कि जन्म जयंती का भी आयोजन संपन्न हुआ. अकम्पनाचार्य आदि ७०० मुनियों के उपसर्ग दूर होने पर रक्षाबंधन पर्व को वात्सल्य पर्व के रूप में मनाया गया जिस अवसर पर नवीन यज्ञोपवीत महोत्सव विधिवत रूप से संपन्न हुआ.
No comments:
Post a Comment
क्या आप कार्यक्रम में आएंगे?