प.पू. श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के साधू परिवार में एक और पिच्छी धारी संत का पदार्पण हुआ जब प.पू. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी,जैन संत एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज के पावन कर कमलों द्वारा ब्र.रजनी दीदी (विजया बाई),सागर,म.प्र. की क्षुल्लिका दीक्षा १३ दिसम्बर को संपन्न हुई.ब्र.रजनी दीदी ने पूज्य आचार्य श्री विद्या सागर जी मुनिराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और पूज्य एलाचार्य श्री से सात प्रतिमा के व्रत लेकर लगभग १५ साल से धर्म ध्यान में अग्रसर थी.लगभग १० साल से मात्र एक बार भोजन आदि ग्रहण क्र एकासन करती थी.इस साल बोलखेडा चातुर्मास में पूज्य एलाचार्य श्री से दीक्षा हेतु प्रार्थना की जिसे गुरुदेव ने समय आने पर विचारेंगे कह कर टाल दिया, लेकिन ब्र.रजनी दीदी की तीव्र इच्छा निरंतर होने से पूज्य गुरुदेव ने राजाखेड़ा पंचकल्याणक के दौरान जन्म कल्याणक के शुभ मुहूर्त प्र उन्हें सात से ग्यारह प्रतिमा प्रदान कर क्षुल्लिका वीरनंदिनी नाम से सुसज्जित किया.विशाल जन समूह की उपस्थिति में पूज्य गुरुदेव ने क्षुल्लिका वीर नंदिनी माताजी के दीक्षा संस्कार किये और स्वसंघ प्रवर्तिका पूज्य आर्यिका श्री गुरुनंदिनी माताजी के संघ में प्रवेश दिया.
ब्र. राजिनी दीदी की पुत्री भी पूज्य एलाचार्य श्री से दीक्षित आर्यिका श्री सौम्यनंदिनी माताजी के रूप में विद्यमान है और ब्र.राजिनी दीदी के पिताजी भी मुनि श्री अतिवीर सागर जी मुनिराज के रूप में समाधी को प्राप्त हुए.ऐसे महा सौभाग्यशाली परिवार में जन्मी ब्र. राजिनी दीदी अब क्षुल्लिका श्री वीरनंदिनी माताजी के नाम से जनि जाएँगी.
Wednesday, December 22, 2010
Tuesday, December 7, 2010
भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 10 - 16 दिसम्बर
परम पूज्य राष्ट्र संत, श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के परम प्रिय लघुनंदन परम पूज्य अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ससंघ के पवन सानिध्य में राजाखेड़ा,धौलपुर(राजस्थान) में भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 10 से 16 दिसम्बर 2010 तक सम्पूर्ण समाज के उत्साह के साथ संपन्न होने जा रहा है जिसमे 10दिसम्बर को झंडारोहण व् उदघाटन 11दिसम्बर को गर्भ कल्याणक पूर्व रूप, 12दिसम्बर को गर्भ कल्याणक उत्तर रूप, 13दिसम्बर जन्म कल्याणक व् भव्य शोभा यात्रा, 14दिसम्बर तप कल्याणक , 15दिसम्बर ज्ञान कल्याणक एवं 16दिसम्बर मोक्ष कल्यानक की क्रियाएं संपन्न होंगी.इस पंचकल्याणक में एल्चार्य श्री के साथ साथ उनके 09 पिच्छीधारी शिष्यों की भी उपस्तिथि प्राप्त हो रही है जिसमे मुनि श्री शिव सागर जी महाराज और आर्यिका श्री गुरुनंदनी माताजी ससंघ का विशेष सानिध्य प्राप्त हुआ है.
इस पंचकल्याणक स्थल राजाखेड़ा की एक विशेषता यह भी है कि इसी धरा पर पूज्य गुरुदेव एलाचार्य श्री ने 17 जून 1988 को आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज से दो प्रतिमा के व्रत भ. बाहुबली पंचकल्याणक में लिए थे और आज वो ही यहाँ पर पंचकल्याणक करा रहे है.इसी राजाखेड़ा की धरा पर चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी मुनिराज पर चिद्दी ब्रह्मण ने उपसर्ग भी किया था.
आप सब भी इस राजाखेड़ा की पावन धरा पर सपरिवार व इष्ट मित्रों सहित सादर आमंत्रित हैं और एतिहासिक पंचकल्याणक में शामिल हो धर्म के सागर में डुबकी अवश्य लगायें.
इस पंचकल्याणक स्थल राजाखेड़ा की एक विशेषता यह भी है कि इसी धरा पर पूज्य गुरुदेव एलाचार्य श्री ने 17 जून 1988 को आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज से दो प्रतिमा के व्रत भ. बाहुबली पंचकल्याणक में लिए थे और आज वो ही यहाँ पर पंचकल्याणक करा रहे है.इसी राजाखेड़ा की धरा पर चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी मुनिराज पर चिद्दी ब्रह्मण ने उपसर्ग भी किया था.
आप सब भी इस राजाखेड़ा की पावन धरा पर सपरिवार व इष्ट मित्रों सहित सादर आमंत्रित हैं और एतिहासिक पंचकल्याणक में शामिल हो धर्म के सागर में डुबकी अवश्य लगायें.
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आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज से पड़ते हुए गुरुदेव
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