गुरु भक्ति

गुरु पूजन :-

स्थापना
गंभीरता सागर के जैसी मन है कोमल पुष्प सा
इक झलक से ही कर्म झरते तन है पावन तीर्थ सा
ऐसे गुणों के सिन्धु के गुण ग्रहण की है भावना
आ जाओ मेरे ह्रदय में गुरु भक्त की है कामना


जल
क्षीरोदधि समकी निर्मल जल ये,भक्ति से भक्त चढाता है
तेरे चरणों की पूजन से यह, नीर क्षीर हो जाता है
गुरु वसुनंदी जी के चरणों में श्रद्धा से शीश झुकाते है
अति भक्ति भाव से हर्षित हो हम तेरी पूज रचाते है
चन्दन
हम राग आग में झुलस रहे तुम हो विरागी हे महायोगी
समता रस हमे प्रदान करो हे आतम सुख के उपभोगी
गुरु वसुनंदी ............................
अक्षत
सब अंतहीन नश्वर जग में भू गगन शिखर पर्वत नदिया
अक्षत की गरिमा से महके जीवन पुष्पों की ये बगिया
गुरु वसुनंदी.............................
पुष्प
है भवो भवो से जागृत गुरु ये विषय भोग की अभिलाषा
हो जाये सुप्त ये विषय दाह सिखला दो ऐसी परिभाषा
गुरु वसुनंदी...............................
नैवेद्य
प्रतिपल इस तन को पुष्ट किया नानाविध व्यंजन स्वाद लिए
इस महारोग की शांति हेतु गुरु कभी न व्रत उपवास किये
गुरु वसुनंदी.................................
दीप
इस मोह के घर अँधेरे में फंस महाकष्ट पाता प्राणी
पा जाये मुक्ति इन कष्टों से दो ज्ञान दीप हे महाज्ञानी
गुरु वसुनंदी...................................
धूप
वसु गुण खोकर वसु कर्म ग्रहण कर नाथ बहुत दुःख पाए है
वसु वसुधा पाने वसुनंदी गुरुवर की शरण में आये है
गुरु वसुनंदी .................................
फल
जाने कितने ही फल पाए पर सबका फल निष्फल पाया
अब ऐसा फल्दे दो गुरुवर छूटे जिससे जग की माया
गुरु वसुनंदी..................................
अर्घ
गुरु चरणों में अर्पित कर दू कोई और वस्तु अनमोल नहीं
भावो से द्रव्य चदते है भावो का कोई मूल नहीं
गुरु वसुनंदी ....................................
जयमाला
हे पुण्य प्रकाशक गुरुवर जी तुम दिव्यदृष्टि के धारी हो
हे पाप विदारक गुरुवर जी अज्ञान मोह तम हारी हो
हर शरणागत को शरण मिले जीवो पर करुनाधारी हो
हर शिष्य भक्त मानव के लिए गुरु तुम ही मंगलकारी हो
प्राणी जग के जब हुए दुखी जब गहन अँधेरा था छाया
तब रिषभचंद के आंगन में रवि ने प्रकाश था फैलाया
जग की नश्वरता देख ह्रदय वैराग्य भाव जब आया था
फिर जिन दीक्षा धारण कर मुनि निर्णय सागर कहलाय थे
सन् २००२ में गुरुवर तुम पाठक पद को पाए थे
श्री राष्ट्र आचार्य प्रवर विद्यानंद के शिष्य कहाए थे
फिर विद्यानन्दाचार्य ने एलाचार्य पद से परिपूर्ण किया
उपाध्याय निर्णय सागर जी को वसुनंदी नाम भी खूब दिया
दर्शन करके सब ही कहते वीरा को हमने पाया है
हर भक्त शिष्य के जीवन में गुरु तेरी ही तो छाया है
तेरे टाप का यह तेज गुरु आलोकित तीनो लोको में
सब देव स्वर्ग से आकर के झुक गए स्वयं तेरे चरणों में
अल्प उम्र से ही गुरुवर शास्त्रों से खुद को जोड़ा है
आश्चर्यचकित जग को कर दे वो आगम अम्बर ओढा है
वाणी में ऐसा जादू है जो सुनता खिंचता आता है
गंभीरपना तेरा देख देख सागर भी स्वयं लजाता है
वो गर्भ रेत मरुथल की जो कि तीव्र ताप को उपजाती
तेरे चरणों के संगम से चन्दन सम शीतल हो जाती
ऐसा प्रभाव तेरा गुरुवर जंगल में मंगल कर देता
क्या मनुज कहे तिर्यंचो को भी जीने का संबल देता
तेरी अमृत वीणा वाणी वात्सल्य ने ऐसा काम किया
जीवन से हरे मानव को भी जीने का अंदाज दिया
माता पिता सखा गुरुवर और ज्येष्ठ भ्रात तुम हो स्वामी
रत्नत्रय कि निधिया देकर उधर करो अंतर्यामी
दोहा
गलती का भंडार हूँ, बुद्धिहीन नादान
क्षमा करो मुझको गुरु, बालक अपना जान


दोहा
विद्या के श्री वसुनंदी की,मंगल महिमा गाता हूँ !
भक्ति भाव से हाथ जोड़कर,चरण कमल सर नाता हूँ!!
बस नहीं चलता भावो पे गुरु,भावो के वश लिखता हूँ!
ज्ञान दिवाकर गुरुवर का मै,पाठ चालीसा करता हूँ!!

चौपाई
जय गुरुदेव दया के सागर,ह्रदय बसों करुणा के आगर!
जिसने भी तुमको है ध्याया,सुख समृधि सब कुछ पाया!!1
मनियापुर का वैभव सुन्दर,यहाँ पर जन्मा बालक मनहर!
मात त्रिवेणी ने है जाया,ऋषभ चंद जी ने पुत्र है पाया!!2
दुनिया का अंधकार मिटाया,रवि बन सुन्दर तेज जगाया!
चार भाई तिन बहना पाई,फिर भी राग न ज्योति जगाई!!3
यौवन होता भोग का दाता,जिससे न तुम जोड़ा नाता!
छोड़ दिया झंझट संसारी,घर से निकले बन ब्रम्चारी!!4
विमल सिन्धु से व्रत को पाया,ब्रह्मचारी दिनेश कहाया!
भिंड नगर में क्षुल्लक दीक्षा,यही धारण की मुनि की दीक्षा!!5
नगर नगर में धर्म फैलाया,जैन धर्म का ध्वज लहराया!
फिर आये तुम दिल्ली नगर में,ह्रदय बसे विद्यानंद मुनि के!!6
विद्या गुरु के संग में आये,गुरु से शिक्षक पद को पाए!
ज्ञान ध्यान में तुम हो धीर,गुरु से बन गए तुम गंभीर!!7
विभिन्न क्षेत्र चौमास बैठाया,त्याग तपस्या खूब बढाया!
इक दिन गुरु ने मन में ठाना,तुमको एलाचार्य बनाना!!8
गुरु ने भेजा इक संदेशा,दिल्ली आओ मम आदेशा!
इक अप्रैल के शुभ अवसर को,एलाचार्य बनाऊं तुमको!!9
गुरु आदेश का पालन कीना,दिल्ली धरा को पावन कीना!
ग्रीन पार्क की पावन भूमि,जहाँ भक्ति से दुनिया झूमी!!10
निर्णय सागर नाम पुराना,बदल दिया गुरु नाम तुम्हारा!
वसुनंदी तुमको कहलाया,योग्य शिष्य तुमको बतलाया!!11
छोटाचार्य तुम्हे बनाया,संघ संचालक तुम्हे बताया!
शिक्षा दीक्षा तुम अब देना,जिनशासन की बनाओ सेना!!12
तुम हो गुरु के शिष्य प्यारे,आदर्शोत्तम आप हमारे!
ज्ञान ध्यान तप में तुम रहते,बाईस परिशह को तुम जयते!!13
त्याग मूर्ति न कोई तुमसा,ज्ञानोपयोगी न होगा तुमसा!
पड़ते औ पढाते सबको,स्वाध्याय में लगाते सबको!!14
कंठ बसाये शास्त्र अनेको,जानो भाषायें भी अनेको!
रचनाये गुरु तेरी अपार,गुरुवर तेरी जय जयकार!!15
भक्ति तेरी करने आये,कमलासन पर तुम्हे बिठाये!
गुरूजी हमको बोध कराओ,सम्यक मार्ग हमे दिखलाओ!!16
मिले है हमको गुरु में वीर,श्रेणिक को जैसे महावीर!
हमको भी तुम योग्य बनाओ,अपना शिष्य हमे बनाओ!!17
वात्सल्य के तुम भंडार,सुख शांति के तुम दातार!
कर दो गुरूजी बेडा पार,शाश्वत सुख के तुम आधार!!18
वसुद्रव्यों से पूज रचाते,वसुनंदी गुरुवर को मनाते!
देना हमको अपना साथ,छुडा न लेना अपना हाथ!!19
वसुनंदी वसुकर्म नशाये,यही भावना नित प्रति भायें!
'सरल' करे कर्मों का नाश,सब भक्तो की ये ही आश!!20

गुरु चालीसा 


दोहा
विद्या के श्री वसुनंदी की,मंगल महिमा गाता हूँ !
भक्ति भाव से हाथ जोड़कर,चरण कमल सर नाता हूँ!!
बस नहीं चलता भावो पे गुरु,भावो के वश लिखता हूँ!
ज्ञान दिवाकर गुरुवर का मै,पाठ चालीसा करता हूँ!!

चौपाई
जय गुरुदेव दया के सागर,ह्रदय बसों करुणा के आगर!
जिसने भी तुमको है ध्याया,सुख समृधि सब कुछ पाया!!1
मनियापुर का वैभव सुन्दर,यहाँ पर जन्मा बालक मनहर!
मात त्रिवेणी ने है जाया,ऋषभ चंद जी ने पुत्र है पाया!!2
दुनिया का अंधकार मिटाया,रवि बन सुन्दर तेज जगाया!
चार भाई तिन बहना पाई,फिर भी राग न ज्योति जगाई!!3
यौवन होता भोग का दाता,जिससे न तुम जोड़ा नाता!
छोड़ दिया झंझट संसारी,घर से निकले बन ब्रम्चारी!!4
विमल सिन्धु से व्रत को पाया,ब्रह्मचारी दिनेश कहाया!
भिंड नगर में क्षुल्लक दीक्षा,यही धारण की मुनि की दीक्षा!!5
नगर नगर में धर्म फैलाया,जैन धर्म का ध्वज लहराया!
फिर आये तुम दिल्ली नगर में,ह्रदय बसे विद्यानंद मुनि के!!6
विद्या गुरु के संग में आये,गुरु से शिक्षक पद को पाए!
ज्ञान ध्यान में तुम हो धीर,गुरु से बन गए तुम गंभीर!!7
विभिन्न क्षेत्र चौमास बैठाया,त्याग तपस्या खूब बढाया!
इक दिन गुरु ने मन में ठाना,तुमको एलाचार्य बनाना!!8
गुरु ने भेजा इक संदेशा,दिल्ली आओ मम आदेशा!
इक अप्रैल के शुभ अवसर को,एलाचार्य बनाऊं तुमको!!9
गुरु आदेश का पालन कीना,दिल्ली धरा को पावन कीना!
ग्रीन पार्क की पावन भूमि,जहाँ भक्ति से दुनिया झूमी!!10
निर्णय सागर नाम पुराना,बदल दिया गुरु नाम तुम्हारा!
वसुनंदी तुमको कहलाया,योग्य शिष्य तुमको बतलाया!!11
छोटाचार्य तुम्हे बनाया,संघ संचालक तुम्हे बताया!
शिक्षा दीक्षा तुम अब देना,जिनशासन की बनाओ सेना!!12
तुम हो गुरु के शिष्य प्यारे,आदर्शोत्तम आप हमारे!
ज्ञान ध्यान तप में तुम रहते,बाईस परिशह को तुम जयते!!13
त्याग मूर्ति न कोई तुमसा,ज्ञानोपयोगी न होगा तुमसा!
पड़ते औ पढाते सबको,स्वाध्याय में लगाते सबको!!14
कंठ बसाये शास्त्र अनेको,जानो भाषायें भी अनेको!
रचनाये गुरु तेरी अपार,गुरुवर तेरी जय जयकार!!15
भक्ति तेरी करने आये,कमलासन पर तुम्हे बिठाये!
गुरूजी हमको बोध कराओ,सम्यक मार्ग हमे दिखलाओ!!16
मिले है हमको गुरु में वीर,श्रेणिक को जैसे महावीर!
हमको भी तुम योग्य बनाओ,अपना शिष्य हमे बनाओ!!17
वात्सल्य के तुम भंडार,सुख शांति के तुम दातार!
कर दो गुरूजी बेडा पार,शाश्वत सुख के तुम आधार!!18
वसुद्रव्यों से पूज रचाते,वसुनंदी गुरुवर को मनाते!
देना हमको अपना साथ,छुडा न लेना अपना हाथ!!19
वसुनंदी वसुकर्म नशाये,यही भावना नित प्रति भायें!
'सरल' करे कर्मों का नाश,सब भक्तो की ये ही आश!!20

दोहा
चालीसा नित पड़ने से, होती कर्म की हान!
भक्ति भाव से नित पढो,निश्चित मोक्ष को जान!!
रही त्रुटी जो पाठ में,क्षमा करो मम नाथ!
हाथ जोड़े द्वारे तेरे,तुम चरणों में माथ!!



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विचार

विचार- "पानी पियो छानकर, वाणी बोलो जानकर "

मुख्य धाराएं

आज का प्रवास

आज का प्रवास 27-02-2016
*परम पूज्य आचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज ससंघ का मंगल विहार दिल्ली की ओर चल रहा है. 05 मार्च को ग्रीन पार्क में होगा मंगल प्रवेश।
*मुनि श्री नमिसागर जी, ऐलक श्री विज्ञानसागर जी,क्षुल्लक श्री विशंक सागर जी,क्षुल्लक श्री अनंत सागर जी मंडोला,गाज़ियाबाद में विराजमान है।
*मुनि श्री शिवानंद जी, मुनि श्री प्रशमानन्द जी अतिशय क्षेत्र जय शान्तिसागर निकेतन,मंडोला,उ.प्र. में विराजमान है।
*संघ नायिका गणिनी आर्यिका श्री गुरुनंदनी माताजी ससंघ राजाखेड़ा,राज. में विराजमान हैं।
*स्वसंघ प्रवर्तिका आर्यिका श्री सौम्यनंदनी माताजी ससंघ पपौरा,म.प्र. में विराजमान हैं।
*आर्यिका श्री पद्मनंदनी माताजी ससंघ ज्योति नगर, दिल्ली में विराजमान हैं।

गुरु शरण

गुरु शरण
आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज से पड़ते हुए गुरुदेव

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