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जैन धर्म त्याग प्रधान धर्म है जिसमे श्रद्धा और शक्ति को पूर्वक त्याग सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।जैन संस्कार से बना जाता है, शारीरिक जन्म से नहीं. पौराणिक समय में जब बालक 8 वर्ष की आयु को प्राप्त करता था तब उसके श्रावक संस्कार किया जाता था लेकिन धीरे धीरे ये प्रथा समाप्त होती गई. जैन केवल नाम के रह गए है और काम के कम इसीलिए परम पूज्य राष्ट्र संत श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य लोह पुरुष परम पूज्य एलाचार्य श्री वसुनंदी जी मुनिराज के द्वारा सेकड़ों वर्षों के इतिहास में प्रथम बार जैन बनाने की प्रक्रिया को रूप देते हुए 28 अक्टूबर को सुहाग नगरी फिरोजाबाद में सहस्राधिक श्रावकों को एक साथ एक ही मंच से नैष्ठिक श्रावक बनाने की महत्वपूर्ण क्रिया को पूर्ण किया.ये इतिहास में पहली बार है जब एक ही मंच से, एक ही स्थान के 1146 जैन अजें लोगों को जैन श्रावक के संस्कारों से संस्कारित कर उन्हें अगमानुसार जैन घोषित किया.सभी इच्छुक दीक्षार्थी श्वेत वस्त्रों में उपस्थित हुए तथा.jpg)
पूज्य गुरुदेव के कर कमलों से सभी के मस्तक पर स्वस्तिक और मंत्रोच्चारण पूर्वक संस्कार संपन्न हुए.सभी दीक्षार्थियों को आशीर्वाद स्वरुप रजत स्वस्तिक, स्फटिक मणि की जाप माला, रजत चावल, नियम पत्र, डायरी व पेन तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गए.
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कार्यक्रम में उपस्थित जनसमूह स्वर सम्राट श्री रुपेश जैन (इंदौर) की स्वर लहरी से गूँज उठा व श्री विशाल जैन (टीकमगढ़) के भजनों से सभी लोग झूम उठे. दीक्षार्थियों के व्रतों की अनुमोदन करने हजारों लोग उपस्थित हुए वही जैनेत्तर समाज के लोगों ने भी जैन धर्म को अपनाते हुए जैन संस्कारों को स्वीकार किया. इस अवसर पर टूंडला जैन समाज द्वारा पूज्य गुरुदेव को "दीक्षा सम्राट" की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा नवीन मानस्थम्भ पंचकल्याणक हेतु श्रीफल चढ़ाया.कार्यक्रम में विधि विधान प्रतिष्ठाचार्य श्री मनोज जैन शास्त्री 'रोहिणी' द्वारा संपन्न हुई व संगीत की धुन संगीतकार सुनील जैन 'भोपाल' द्वारा प्रस्तुत की गई. कार्यक्रम का प्रारंभ चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन व गुरु पूजन से हुआ तथा समापन गुरु आरती से हुआ.
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